गुरुवार, 29 मार्च 2012

नए शहर में ......देखिए.....



नए शहर में अपना, नया मुकाम देखिए,
कोई चाय या कोई, पान की दुकान देखिए. 

अकेला हो पेड़ तो, कोई बांध जाता बकरियाँ,
पसंद न आए फिर भी, "मंच" गुमनाम देखिए. 

आवारा फिरता है, शहर-शहर, गली-गली,
कहीं मिल जाये कोई, बंजारन परेशां देखिए. 

काम हो न हो, वक्त खर्चें इसकी चिंता में,
सुबह जगें देर से, पर मौका चर्चा-ए-आम देखिए. 

इत्तेफाक न हो मज़हब से, रखे हों “नीरव”-सा उपनाम,
अलग-थलग न पड़ें ,सो शर्मा-वर्माजी-सा नाम देखिए.  



-नवनीत नीरव-

3 टिप्‍पणियां:

Vandana Singh ने कहा…

neerav ji ...
Naam k hi daam hain..sharma varma ki bheed me space hi nhi hai..pahchaan hi mushkil hai ..daam to baad ki baat :P:D hehehe
badhiya gazal hui hai.

Mithilesh dubey ने कहा…

लाजवाब शब्द सयोंजन के साथ सुन्दर ग़ज़ल .

bibek ने कहा…

great cohearent and touchy one.simple line yet piercing.