सोमवार, 4 अप्रैल 2011

ओ मेरे आसमां

बचपन से साथ ही चलें हैं हम,

गाँव कीहर गलियों से गुजर के,

मीलों चले पर न मिल पाए अब तक,

निहारा मैंने तुझको औ तूने मुझे,

रिश्ता रहा जैसे अजनबी दोस्त हों,

जो मिलते, मुस्कुराते औ चले जाते हों,

हर खुशी पर तुम्हें निहारते रहे हम,

अपनी रोशनी, मेह देते रहे तुम,

चाँद- तारों की न जाने कितनी कहानी,

भेजते रहे तुम न जाने कितनों की जुबानी,’

खत्म हो जाती जिनकी कहानी यहाँ,

सजाते तुम उन सबसे अपना जहाँ,

समय बदला मैं भी बदल गया,

तुम्हारी संगत से दूर होता गया,

कुछ दूरियाँ मैंने पाल ली हैं अभी,

पर तुम्हारी दूरी क्या कम थी कभी,?

हो गया हूँ इस बार मैं अनजाना,

शहर नया है और लोग बेगाना,

तुम भी तो थे अनजाने मेरे लिए,

पर न जाने कितने प्यार तुमने दिए,

शाम ढलते ही मायूसी पसरती है यहाँ,

उदासियाँ करती हैं हालात दिल की बयाँ,

एक बेचैनी सी उठती है आजकल,

मन में अँधेरा सा छाता है पल पल,

फिर से एक आखिरी सहारा तुम बनो,

मुझे बना एक तारा अपने संग रखो,

अब तो मान जा मेरा इक कहना,

ले ले मुझे अपनी आगोश में आसमां.

ओ मेरे आसमां,

ओ मेरे आसमां....

-नवनीत नीरव-