अक्सर देखा है मैंने,
पेड़ से पत्तों को अलग होते हुए ,
हर साल पतझड़ में।
हर बार वो टूटते हैं,
फिर नए पत्ते जुड़ते हैं,
यह सिलसिला हर साल,
दुहराया जाता है।
पर उन पत्तों का क्या?
जो टूट कर बिखर जाते हैं,
जैसे वास्ता ही नहीं रहा हो ,
कभी एक दूसरे से ।
आत्मीय रिश्ते,
जब टूटते हैं ,
तो वे अक्सर ही,संवादहीन हो जाते हैं।
मुस्कुराना एक दूसरे के लिए,
जैसे कठिन हो जाता है,
और नजरें छिपते हुए,
गुजरना चाहती हैं।
एक अर्सा बीत गया,
साथ छूटे अपनी प्रेमिका का,
पर अब भी जब वो,
मेरे सामने आती है,
एक नजर देखती है मुझे,
धीमे से मुस्कुराती है
और फिर
हौले से गुजर जाती है।
-नवनीत नीरव-
पेड़ से पत्तों को अलग होते हुए ,
हर साल पतझड़ में।
हर बार वो टूटते हैं,
फिर नए पत्ते जुड़ते हैं,
यह सिलसिला हर साल,
दुहराया जाता है।
पर उन पत्तों का क्या?
जो टूट कर बिखर जाते हैं,
जैसे वास्ता ही नहीं रहा हो ,
कभी एक दूसरे से ।
आत्मीय रिश्ते,
जब टूटते हैं ,
तो वे अक्सर ही,संवादहीन हो जाते हैं।
मुस्कुराना एक दूसरे के लिए,
जैसे कठिन हो जाता है,
और नजरें छिपते हुए,
गुजरना चाहती हैं।
एक अर्सा बीत गया,
साथ छूटे अपनी प्रेमिका का,
पर अब भी जब वो,
मेरे सामने आती है,
एक नजर देखती है मुझे,
धीमे से मुस्कुराती है
और फिर
हौले से गुजर जाती है।
-नवनीत नीरव-