गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

चट्टानें भी दरकती हैं .

(आज अपने जन्मदिन पर मेरी कविता आपके लिए....)
.....तो अब आए हो तुम,
अपने प्यार का वास्ता देने,
मुझ पर अपना हक जतलाने,
जब कि मेरे आंसुओं ने,
अपने सूखने की खातिर ,
जगहें ढूंढ लीं हैं
आखिर कब तक बहते ,
इस आशा के साथ ,
कि तुम आओगे ,
और अपने हाथों से,
छू लोगे उन्हें

..... मजबूरी ,
मजबूरी किसके साथ नही होती?
मैं भी तो मजबूर थी ,
तुम्हारे प्यार में
या तुमने मजबूर किया मुझे ,
अपने मन में बसाये रखने पर
मैं मजबूर थी,
घर की बंदिशें मानने पर,
पर ऐसा कभी हुआ,
तुमने चाहा और मैं आई

.....तो क्या वो मजबूरियां
जो अभी तक रोके हुए थी
रास्ता तुम्हारा,
अब नहीं रहीं?
जो तुम चले आए
जबकि तुम जानते हो,
इन गुजरे सालों में तुमने ,
मेरी सुध तक ली
शायद तुम्हारे लिए,
रिश्तों की अहमियत,
बनने तक ही होती है ,
निभाना तो तुमने ,
चाहा ही नहीं कभी

मेरे दुःख के सहभागी,
भले बनते तुम,
समाज के तानों से,
भले बचाते तुम,
पर मेरे लिए आखिरी सहारा,
तुम ही तो थे

.....हाँ कहा था मैंने ,
अपने प्यार की खातिर,
ख़ुद को विश्वास दिलाने कि खातिर ,
हमारा प्यार दृढ़ है ,
चट्टानों की तरह,
पर ये कैसे भूल गए तुम,
समय के साथ,
हर चीज बदलती है,
वक्त के थपेड़ों से टकराकर,
चट्टानें भी दरकती हैं
चट्टानें भी दरकती हैं

-नवनीत नीरव -