कितना मुश्किल होता है न !
खुद को एक -दूसरे से अलग करना,
जिद और अहम जो न करायें,
हर बार की तरह विश्वास था,
सब कुछ सामान्य हो जायेगा,
तुम लौट आओगी,
पर वो टूट गया,
सिर्फ एक टीस ही है जो अक्सरहां,
तुम्हारी याद दिलाती है,
अलगाव में दर्द,
सिर्फ एक को ही नहीं होता.
कभी हमारे ह्रदय मिले थे,
तभी तो शुरू हुआ एक रिश्ता,
ये और बात है कि,
मन नहीं मिल पाए,
सोच समझौता न कर सके,
और आखिरकार,
रिश्तों की डोरियाँ,
आहिस्ता से तोड़ दी गईं.
झटके से तोड़ने की कोशिश की थी हमने,
पर वो असह्य था,
हालाँकि यह भी कुछ कम नहीं,
जुड़ी चीजों को उखाड़ने से,
अधूरा सा लगता है न !
एकदम सूना -सूना सा,
कुछ में तो स्थायित्व भी आ गया था,
सच बताऊँ दर्द तो मुझे भी हुआ है,
उतना ही दर्द,
जितना तुम आज महसूस करती होगी.
- नवनीत नीरव-