बुधवार, 1 अप्रैल 2009

अंदाजे -बयां

(मेरी एक दोस्त हैं दिल्ली सेनई-नई दोस्ती हुई है हमारीकवितायें लिखती हैंवह एक ही बात लिखती हैं कि- उनकी कविता पर मैं अपने विचार दूँअक्सर जब मैं दे नहीं पाता, तो वे दोस्ती तोड़ने की बात करती हैंयह कविता उन्हीं के लिए है। )

अपने होठों से कैसे तुम्हारा अंदाजे बयां कर दूँ ,
मन के अहसासों को ख़ुद से जुदा कर दूँ ।।

शोर करना तो झरने की फितरत है ,
कैसे समंदर के जज्बात मैं जग -जहाँ कर दूँ ।।

नर्म अल्फाज , भली बातें मुहज्जब लहजे ,
जो छलते हैं क्यों उसे मैं अदा कर दूँ ।।

ख्याली तितलियाँ जो इतरा रही हैं फूलों के रंग पे ,
हलकी बारिश से क्यों हर रंग मैं हल्का कर दूँ ।।

हर शाख भुला देती है पत्तों को पतझड़ में,
कैसे बचपन के यार को मैं नाआशना कह दूँ । ।

-नवनीत नीरव-