शनिवार, 29 जून 2013

बरसाती मन


गम का बादल फटा,
मन बरसाती हो गया,
बोसा पहली बारिश का,
तन-मन सिहरा गया,
चंद ख्यालों का कागजी परिंदा,
नन्हें पंख फैला कहीं उड़ गया,

नए रिश्तों की नन्हीं बूंदें,
पलकों के पत्तों से टपकने लगीं,
मन के आड़े-तिरछे मेढ़ों में,
उम्मीदों की दूब पनपने लगी,
देखो! नाचने थिरकने लगे मोर,
झींगुर का सुर सुरीला हो गया,
छाने लगी दिल पे हरियाली,
मौसम धुलकर फिर नया हो गया.

नये भेष गढ़ कर बादल आये,
कभी कपासी कभी पक्षाभ बन छाये,
उमड़-घुमड़ कर दौड़े कारी बदलियाँ,
मतवाले हाथी संग झूमें शहर की गलियां,
बूँदें छमके जैसे पायल गोरी की,
झमके जैसे हरी चूड़ियाँ छोरी की,
टीन के छप्पर को ऐसे बजातीं,
कोई बच्चा शरारत से छत पर कूद रहा.

उम्मीद करो ये सावन कभी न जाए,
घटाएं उमड़ -घुमड़ रोज चली आयें,
गुलमोहर-अमलतास राहों पर,
सजधज कर यूँ ही इतरायें,
धुलते रहें शहर भींगते रहें गाँव,
पहाड़ी नदी में  चलती रहे नाव,
अपने दिल के किनारों के बीच,
जहाँ कोई एहसास है बह चला.

-नवनीत नीरव-