गुरुवार, 14 मई 2009

तपिश


लम्हों की बात करुँ तो,
ये पल में गुजर जाते हैं,
कैद
करुँ मुट्ठी में तो,
रेत
से फिसल जाते हैं
सफर
की बात करुँ तो,
कई
हसीन चेहरे मिल जाते है,
दिल चाहे गर रोकना तो,
सुनहरी यादें छोड़ जाते हैं मौसमों की बात करुँ तो,
कई
रंग निखर आते हैं,
चटकी
हुई हर कली के रंग,जेहन में उतर आते हैं

बचपन
की बात करुँ तो,
बाहें
फैलाये बच्चे बुलाते हैं,
उनींदी
यादों के उड़नखटोले पर,
मुझे
मेरे गाँव ले जाते हैं बीतीं बातें गर याद करुँ तो,
गुजरे
पल किस्से सुनाते हैं,
वर्त्तमान
की तपिश कम कर,
माँ
के आँचल-सी छाँव दे जाते हैं

-नवनीत नीरव-