जब
कभी सुबह देर से हुई मेरी,
सोचते
हैं सभी,
शायद!
रात देर से सोया होगा,
किसी
सुबह जल्दी जगा तो,
मैं
कहता फिरता हूँ,
रात
नींद अच्छी नहीं आई,
जब
कभी,
किसी
ने उठाया मुझे तड़के,
या
रात बितायी टहलते-टहलते,
हमेशा
कुछ फ्लैश बैक सा चलता है.
लोग
कैसे कहते हैं “पूरी नींद ली”
पर
मेरी आज तक अधूरी है,
नींद
की गुत्थम-गुत्थी का आलम है,
जम्हाई
दिन भर दस्तक देती है,
अक्सर ऊँघता रहता हूँ,
दबी जुबां से लोग नए नाम लेते हैं,
यद्यपि
मुझे मालूम है,
आलस्य नहीं है ये सब,
ये
तो मेरी युवावस्था के
कुछ
सपने अन्जाने हैं,
कुछ
अधूरे तराने हैं ,
नींद
भले टूट जाये अलस्सुबह,
पर
अभी तक,
कुछ
ख्वाब सिरहाने हैं .
-नवनीत नीरव-
2 टिप्पणियां:
जी हां, कुछ खवाब सिरहाने हैं...
जी हां, कुछ खवाब सिरहाने हैं...
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