रविवार, 28 फ़रवरी 2010

रंग और रिश्ते

आओ, मन को खुशी से भर दें,
दिल के जज्बातों को रंग दें,
फागुन की इस अलमस्ती में,
बीते लम्हों संग भी चल लें।


हम वक्त को कहते पाजी है,
बेघर कर करता है यादों को,
बचपन से साथ रहे जो अब तक ,
रिश्ते- नातों के वादों को,
इक अहसास रहे मन में,
छूटे रिश्ते भी हैं अपने ,
कोशिश हो इस त्योहार पर,
कुछ रंग उन मुखड़ों पर भी मल दें।
फागुन की इस अलमस्ती में,
बीते लम्हों संग भी चल लें।


कोई रंग कहाँ गहरा होता है?
कुछ वर्षों में हल्का होता है
समय,धूप, हालात से उलझ कर,
अपनी रंगत खो देता है,
वो रंग जो मिले अहसासों का,
प्यार के संग मुलाकातों का ,
इनको अपनाकर इस त्योहार पर,
हल्के रंगों को पक्का कर दें।
फागुन की इस अलमस्ती में,
बीते लम्हों संग भी चल लें।

-नवनीत नीरव-

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

जिद्दी

अब कैसे तुझको समझाऊँ?
मेरे दिल तू तो जिद्दी है,
क्यों करता है उन बातों पे गौर?
जो मैंने यूँ ही कह दी है
पहले तू कहता है मुझसे,
कुछ कह दूँ तुझसे प्यार से,
जो कुछ सोचा है मैंने अब तक,
अपने प्यार के इकरार में,
बोलूं तो लगता है तुझको,
मैंने कुछ बात छुपाई है,
जब भी बोलूं मैं खुल कर हंस कर,
क्यों लगे तुझे मेरी गलती है
क्यों करता है उन बातों पे गौर,
जो मैंने यूँ ही कह दी है


मुझको तू तो जानता है,
मेरा स्वाभाव पहचानता है,
ये प्यार नहीं तो फिर क्या है ?
तू मुझको अपना मानता है
कुछ बुरा जो मैं कह जाऊं तुझसे,
फिर मैं पछताता हूँ दिल से,
इक टीस सी उठती है अक्सर,
कोई तीर चुभा हो मेरे शरीर में,
मान तेरा मैं करता हूँ,
दिल ही दिल में मरता हूँ,
जिस दिन होवे बात तुझसे,
इक दर्द सा दिल में सहता हूँ,
अब तो समझ जा बात मेरी,
मैंने दिल की हर बात बता दी है
क्यों करता है उन बातों पे गौर,
जो मैंने यूँ ही कह दी है

-नवनीत नीरव -

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010

अब दर्द नहीं जाता

कितना भी मुस्कुरा लें, अब दर्द नहीं जाता,
अक्सर रात को तन्हा चाँद,मुझको तन्हा कर जाता

चंद बादलों से मिलकर, अब भी रो देता है आसमां,
सच है अपनों के मरहम से, इक दर्द नहीं जाता

जब भी जाना है सहरा को ,वो खूबसूरत ही लगता है,
जब तक कोई काफिला, यहाँ भटक नहीं जाता

ये सच है सर्द रातें, रहमदिल नहीं होती,
वर्ना कोई चाहने वाला, क्यों सर्द हो जाता

जब जख्म बनाये हैं, मिरे पैरों में खुद के जूते,
किसी चाहने वाले को अब, वो दिखाया नहीं जाता

-नवनीत नीरव -