Copyright-Sunanda Sahay |
सुबह का रंग,
सुरमई लाल हुआ जाता है,
एक नई भोर होने को है,
आकाश भी रंग बदलता है न !
चूड़ी-लहठी का स्पर्श,
मन में एक उमंग सी जगाती
है,
और सिन्दूर की गंध,
सुबह की ठंडी हवाओं संग,
मेरे अंतर में उतर आई है.
कल तक तो ऐसा न था,
पर आज जो है,
उसने मुझे एक अपनापन दिया
है.
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एक आकाश मेरा था,
बिलकुल बरसात के बाद
के,
निरभ्र नभ के जैसा,
जहाँ बादलों से छन
कर,
कुछ रौशनी आती थी,
मानों दिन में
कंदीलों से,
आभा फूट पड़ी
हो,
कभी नम सी , कभी
शुष्क सी,
जिनको देख कर मैं
हुई जाती थी,
आशावादी,
स्वप्नदर्शी,
जहाँ कई बार खुदको,
लिखा था मैंने,
बड़ी ही स्वतंत्रता
से,
अच्छी बातें,
कल्पनाओं की उड़ान भर,
जितनी की इस धरती से
उड़ी जा सकती थी,
पर हर बार यहाँ,
कुछ न कुछ छूट जाता
था,
कुछ अतिरिक्त शब्द लिख
देती थी,
ऊपर की लाइनों में
बची जगहों में निशां बना कर,
अहसास होने पर की
कुछ “मिसिंग” है.
ऐसे ही बनाया है
मैंने खुद को,
खुद की भावनाओं
को....
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आज से तुम भी तो
होगे,
मेरे साथ,
मुझे नई ऊंचाईयों पर
ले जाने को,
देखो तुम भी कुछ लिख
देना यहाँ,
कोई इबारत “फूल
लेंथ” की,
जैसे काली स्लेट पर
कोई,
सफ़ेद खड़िया से ,
मन के उभरते भावों
को उकेरता है,
मिटाता है फिर
उकेरता है,
अपने विचारों से भी
अवगत कराते रहना,
मैं उनको शब्द -रूप
दूंगी.
फिर तुम उनको
“रिव्यू” करना.
थोड़ी आलसी हूँ इस
मामले में,
मन से कहाँ कर पाती
हूँ “रिव्यू”.
तुम साथ दोगे तो,
हो सकता है मैं कुछ
मिस न करूँ,
कुछ नया जोड़ने की
जरूरत न पड़े.
चलो आज यही वादा कर
दो,
मुझे ताउम्र
सम्पूर्ण रखोगे.
भोर होने को है,
एक नई सुबह,
एक नया दिन,
एक सम्पूर्ण दिवस.
और अपना सारा आकाश.
-नवनीत नीरव-
1 टिप्पणी:
bahut hi khoobsoorat :)
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