शनिवार, 19 दिसंबर 2009

लौट आई जिंदगी (पलामू चुनाव के बाद)

आज फिर सुबह हुई,
निरभ्र खुला आसमान,
ठंढी हवाएं,
धीमी -धीमी गुनगुनाती हुई।
छिट-पुट बादलों से छनकर,
सीधे बदन को छूती
सूरज की किरनें,
पंछियों के कलरव,
वातावरण का धीमा शोर,
और न जाने कितना कुछ ।

पर कल ऐसा नहीं था,
ये सब कुछ खामोश था ,
दहशत की चादर में लिपटा,
एक अनजाने भय से,
आज जाने क्या होगा?

आज सुबह से ही,
देख रहा हूँ
वातावरण जैसे उत्सव मना रहा है।
एक-एक करके लौट रहीं हैं,
रंग बिरंगी बसें,
जैसे चिड़ियों का झुण्ड,
उन्मुक्त उड़ता चला आ रहा हो,
सुदूर अंचल से.
कर्तव्य निष्ठ लोग,
बहादुर भारतीय जवान,
और कुछ लोग,
जो अनजाने ही ,
इसका हिस्सा बन गए,
सभी के चेहरे पर,
एक सुकून है ,
एक खुशनुमा सुकून ।

सबके चेहरे की ताजगी,
मुझे भी अपनेपन की ख़ुशी दे रही है,
एक सुखद अहसास जताते हुए ,
बार-बार यही कहते हुए,
लौट आई जिंदगी,
अपने घर आई जिंदगी। ।

-नवनीत नीरव-

गुरुवार, 19 नवंबर 2009

व्यथा एक युवा की

इतनी दूर निकल आये हैं हम,
अपने बसेरे से,
कि वापस लौटना अब मुमकिन नहीं,
मन तो कहता है,
चल मिल आयें अपनों से,
पर दिल है कि इजाजत ही नहीं देता
कितने अरमां लिए हम,
निकले हैं अपने घर से,
नए आशियाने की तलाश ने,
दूर किया हमें अपने जन से,
हर दिशा में एक रोशनी की तलाश,
हर रोज जारी है,
पर अँधेरा इतना गहरा है
कि छंटने का नाम नहीं लेता
आकाँक्षाओं के भार तले
कभी-कभी घुटन सी होती है,
यादें स्मृति पटल पर छा जाती हैं
मन तो कहता है,
चल मिल आयें अपनों से
पर दिल है कि इजाजत ही नहीं देता

वापस लौटने की इच्छा दूध उफान सी,
पर एक ही बात काम करती है,
शीतल जल के बूंदों सी,
क्या कहूँगा?
क्यों लौट आया मैं?
बड़े उत्साह से जो स्वप्न संजोया,
क्यों उसे तोड़ आया मैं ?
अब तो उम्र नहीं है बचपन की,
जो लोग सुनेंगे हमारी बातें,
सामने तो सिर्फ चेहरे के भाव बदलेंगे,
पीठ -पीछे तानों के तीर चलेंगे,
सारी संवेदनाएं तो मर चुकी हैं,
भावनाएं कभी -की लुट चुकी हैं,
रह-रहकर अपनों के ,
हताश चेहरे नजर आते हैं,
क्यों अरमान संजोये थे जतन से,
जो रेत में दफ्न हुए जाते हैं
मन तो कहता है
चल मिल आयें अपनों से
पर दिल है कि इजाजत ही नहीं देता

वापस लौटने से क्या हासिल होगा,
थोड़ा-सा प्यार, स्नेह दुलार,
जो समय के साथ घटता जायेगा,
घसीटने के बाद छोड़ दिया जायेगा ,
कुछ के मन में स्नेह तो रहेंगे,
पर आधार औ आलम्ब के बिना,
वे कुछ न कर सकेंगे,
मेरी कमजोरियां उनका बोझ हो जायेंगी,
जिंदगी सोच और चिंताओं में गुजर जायेगी,
अब रह -रह कर एक ही बात,
जेहन में आती है,
"एक मौत हमारी दुश्मन थी,
अब जिंदगी भी हमारी सौत बनी"
आज तोड़ दे यह मोह का बंधन,
वर्त्तमान से निभाता रह दोस्ती,
राह के साथ तू चला चल,
एक दिन अवश्य पा जायेगा मंजिल

-नवनीत नीरव-

शनिवार, 17 अक्तूबर 2009

एक दीया, मेरे दोस्त तुम भी जलाना.....

अमावस की रात, जब अँधेरी हो जाती है,

स्याह -सा लगता है, यह सारा जमाना,

तवे पर जब कभी कालिख जम जाये,

मुश्किल होता है तब उसको मिटाना,

एक दीपशिखा जो युगों तक जलती है,

अनवरत संसार के हर तम् हरती है,

हर बार दीयों की कोशिश यही होती है,

मिलकर संसार से है अँधेरा मिटाना।

एक ही गुजारिश तुमसे इस बार,

एक दीया, मेरे दोस्त तुम भी जलाना।।


जब -जब मन के फासले बढेंगे,

कहाँ पुराने रिश्ते अच्छे हाल में रहेंगे?

अँधेरा रहता है इस ताक में बैठा,

लोग कब एक दूजे से उलझेंगे,

अक्सरहां गिला हम कर जाते हैं उनसे,

करीब जो लोग हमारे होते हैं सबसे,

मन के दरमयां जो अँधेरा है फैला,

कोशिश हो उसको हर हाल में मिटाना

गुजारिश है तुमसे, कोई दिल दुखाना,

एक दीया,मेरे दोस्त तुम भी जलाना।।

-नवनीत नीरव-




बुधवार, 14 अक्तूबर 2009

हमशक्ल

अचानक ही उस दिन
महसूस हुआ था मुझे,
कि तुम मेरे कैम्पस में हो,
जब देखा था मैंने,
वही गुलाबी सूट पहने,
(जिस पर मैं फ़िदा था)
सिंगल सी चोटी बनाये,
ठीक तुम्हारे कद वाली
उस सांवली सी लड़की को,
दूर से

मन की भावनाएं,
जो उनींदी सी थीं,
मानों उन्हें सुबह का ठंढा झोंका,
अचानक ही छू गया हो,
विश्वास नहीं हो रहा था,
कि वो तुम ही हो,
खुद के यकीन की खातिर,
कई बार देखा उसे मैंने,
छुप-छुपकर,
कभी कॉलेज की गैलरी से,
कभी लाइब्रेरी की शेल्फ से,
कभी कैफेटेरिया के नजदीक,
कभी गुजरते हुए हरे लॉन से,
सिर्फ यही जानने के लिए,
कहीं वो तुम ही तो नहीं

अब तो छुपकर उसे देखना,
मेरी आदत बन रही है,
मैं जानता हूँ,
कि वो तुम नहीं हो,
फिर भी जाने क्यूँ मैं,
एक अन्जाना आकर्षण,
महसूस कर रहा हूँ

- नवनीत नीरव -

गुरुवार, 8 अक्तूबर 2009

नानी कहे कहानी


व्याकुल हो बच्चे बैठे हैं ,
छोड़ के सारी शैतानी,
कोई मस्ती करता है,
कोई करता मनमानी,
दूर देश में रहती है,
सुंदर परियों की रानी,
मधुर -मधुर सपनों को ले,
नानी कहे कहानी

परीलोक है सुंदर देश,
कभी होता किसी को क्लेश,
बहती है वहां दूध की नदियाँ,
इठलाती उनमें सुंदर परियां,
चलती है उसमें चांदी की नाव,
बैठ घूम आयें सपनों के गाँव,
सूखे मेवे और रसीले फल,
तारों संग लटकते पेड़ों पर,
शब्दचित्रों की अनोखी बातें,
जिसे कभी, देखी जानी,
मधुर -मधुर सपनों को ले,
नानी कहे कहानी

परी लोक में है एक रानी परी,
उसके हैं पंख जादू की छड़ी,
झिलमिल चमकीले वस्त्र हैं उसके,
स्वर्ण मुकुट शोभित है सिर पे,
बच्चे प्यारे लगते उसको,
बहुत प्यार करती है सबको,
ऐसे ही कुछ प्यारे किस्से,
उनमें कुछ रोचक कुछ अनोखे,
अपलक निहारते सारे बच्चे,
सुनते जाते नानी की जुबानी,
मधुर -मधुर सपनों को ले,
नानी कहे कहानी

-
नवनीत नीरव-