रविवार, 30 अगस्त 2009

दादाजी

चांदनी रात में,
जब बरसात होती है,
उस समय,
वह स्याह रात भी,
कुछ खास होती है,
खिड़की में खड़े होकर,
आकाश की ओर देखता हूँ,
चंदा की रोशनी संग,
झरती हुई बूंदों को,
निर्मल चाँदनी में,
चमकती हुई बूंदों को,
लगता है आसमान में रहने वाले,
अनगिनत तारे टूटकर,
आज धरती पर आ रहे हैं।

न जाने कितनी देर तक खड़ा रहता हूँ,
इस इंतजार में
यही सोचते,
शायद इन तारों संग,
मेरे दादू भी आते हों,
जिन्हें मिल नहीं पाया मैं,
आजतक अपने बचपन से

-नवनीत नीरव-