मंगलवार, 10 दिसंबर 2013

दो क्षणिकाएं ...

तेरे बचपन में



भोर के धुंधलके में जब जगा,
देखा पार्क की बेंच पर,
दो बच्चे बैठे मुस्कुराते हैं.
रात ख्वाबों में गया था तेरे गाँव,
मिलने तुझसे,
तेरे बचपन में....



टी-स्टाल 




सोती रातों में जागकर,
मैंने क्या भला किया?
कुछ बेचारे ख्वाबों की नींद उड़ा दी,
देखो न! सुबह सुबह अलसाए फिरते हैं..
तेरे दिल की वादी से गुजरता है न
जो रास्ता....
खोलना चाहता हूँ वहीँ एक किनारे पर,
टी-स्टाल....




-नवनीत नीरव-