टुकडों में मुझसे तुम मिला न करो ,
सपने जो सच न होंगे बुना न करो।
मैं तनहा ही खुश हूँ जिंदगी से मगर ,
मझधार की लहरों में मुझे खड़ा न करो ।
तुम्हारा सानिध्य सुकून देता है मुझे ,
ज्यादा कुछ कहूं इसकी आशा न करो।
मंद हवा के झोंके राहत देते हैं मुझे ,
तूफानों में मुझ दीपक को जलाया न करो।
मैं काफिर हूँ ख़बर तो होगी तुम्हें ,
मेरी हर ओर सरहदें न बनाया करो।
- नवनीत नीरव -