शुक्रवार, 18 जून 2010

मेरे घर का आँगन

बचपन से लेकर आज तक,
दिन से लेकर रात तक,
दिन भर के खेल खिलौने से,
वो रात में पड़े हुए खाट पर,
हर पहर पर जहाँ गुजरता जाता ,
ऐसा था मेरे घर का आँगन.
एक कोने में तुलसी का चबूतरा,
संग लगा हुआ भगवान जी का झंडा,
बीचों बीच एक आम का पेड़,
छत को देखती वो मेहदी की डाल,
एकांत में पड़ा मिटटी का चूल्हा,
जिस पर पूरे दिन दूध गुनगुनाता.
घर तो छोटा था लेकिन,
आँगन मेरा बड़ा विशाल,
जैसे कोई साधारण सज्जन,
रखता हो एक प्यारा दिल,
आज तो इमारतें हैं बड़ी –बड़ी,
पर उनमें दिल नहीं होते,
या फिर होते भी है तो इतने छोटे,
जिसमें कुछ भी नहीं आ पाता.

-navnit nirav-