मंगलवार, 12 मई 2009

पानी की खोज में .....


(गर्मी अपने चरम पर है। सारे ताल -तलैया सूख चुके हैं सबसे ज्यादा परेशानी उन महिलाओं को होती है जिन्हें अपने घर से दूर किसी ताल या कुएं से पानी लाना पड़ता है ऐसी ही एक स्त्री है जो पानी लाने के लिए गाँव से दूर किसी तालाब पर जा रही है)

सिर पर लिए छूछी गगरिया,
संग सहेलियां उनकी अठखेलियाँ,
चली जा रही मैं ,
दूर किसी ताल की तरफ,
पानी की खोज में

तीक्ष्ण धूप से तन हुए श्यामल,
बदरंगी हुई जाती है,
मोरी चुनरिया,
कोई उन कारे मेघों से कह दे,
बरसो कभी तो म्हारो गाँव
तुम्हरी बिजुरियों को छीन के,
बाँधूंगी अपनी चढ़ती उमरिया,
जो ढलती जा रही है,
दिनभर भटकते हुए,
पानी की खोज में ....

-नवनीत नीरव-