गुरुवार, 14 जून 2012

गाँव में हर तरफ ही आग लगी है


जब से यहाँ विकास की बयार बही है,
गाँवों में हर तरफ ही आग लगी है.

दिन भर चलते हैं भारी मशीन खेतों में,
शाम ढले पौधे-चारे की होली-मशान जली है.

कोई नहीं यहाँ जो काटे,घर ले जाए इन्हें,
मवेशियों के पेट पर सीधे लात पड़ी है.

आहर- पाइन भर दिए बसने के नाम पर,
मनरेगा के काम की अभी बंदरबांट भई है.

घर बड़े हुए सबके आँगन दिल छोटे कर,
गलियों -नालियों में अभी तक जान फंसी है.

मिटटी की सारी कोठियां कब की फोड़ दी गयीं,
नए कपड़े-गहने की वहाँ आलमारी सजी है.

डिस टीवी, मोबाईल ही अब जिंदगी हुई,
इसी तरक्की से गाँव की पहचान हुई है.

अब आग बुझेगी कैसे ये हम-आप सोचते हैं,
कितने हैं जिन्हें यकीं नहीं कि आग भी लगी है.
 
-नवनीत नीरव-