गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

अंजुरी भर-भर गुलाल (होरी)


(अभी अपने बिहार प्रवास पर हूँ. आदर्श पंचायत बनाने का प्रयास जारी है. इसी क्रम में कई गाँवों के दौरे भी कर चुका हूँ. काफी अच्छी स्थिति में हैं नालंदा जिले के कुछ गांव. मजबूत चौड़े लिंक रोड, साफ़ सुथरी गांव की गलियां- नालियां, गुलाबी- पीली आंगनबाड़ी और स्कूलों की इमारतें. हरे-भरे लहलहाते खेत. एक नजर में लगता है कि ज्यादा मिहनत नहीं होगी इनको आदर्श पंचायत बनाने में. एक जगह पता नहीं क्यों मैंने पूछ लिया- “क्या आप लोग फगुआ गाते हैं?” जवाब मिला- “नहीं. आज- कल कोई अब इन सभी बातों में दिलचस्पी नहीं लेता. कारण एक तो आज कल के लोगों के संस्कार बुरे हो गए हैं. नशा कर के झगडा करते हैं. दूसरी बात कोई बाहर काम करने वाला गांव नहीं आता है. सोचता है कि आने-जाने में जितना खर्च होगा उतने में तो शहर में ही रह कर होली भी मन जायेगी और काम भी बाधित नहीं होगा. पिछले कुछ सालों में कई बुजुर्ग इस दुनिया से चले गए. अब कौन करता है ये सब? नई पीढ़ी तो किसी काम की नहीं है. यहाँ होली के जैसे अन्य त्योहारों की भी स्थिति है. अब ये नाम- मात्र के त्यौहार रह गए हैं.. जिस आत्मविश्वास से उस व्यक्ति ने मेरे सवाल का उत्तर बेपरवाह होकर दिया था, उससे तो मैं यही अनुमान लगा रहा था कि शायद आज आदर्श ग्राम के मायने बदल गए हैं. आज के समय में भावनाओं का कोई स्थान नहीं रह गया है हमारे समाज में. प्रस्तुत गीत में मैंने इसी पर प्रकाश डाला है.)


होरी 

अंजुरी भर-भर गुलाल,
तुमको लगा दें हम सजनिया.

गांव के संगी भी, साथ में हैं आज,
भंग औ रंग में डूबे हैं जज्बात,
संग हैं तमाशबीन टोलियाँ,
तुमको लगा दें हम सजनिया.
अंजुरी भर-भर गुलाल........

कितने बरस पर ये मौसम है आया,
फागुन के अपने उस बचपन में लाया,
मिट गईं हैं आज सब दूरियाँ.
तुमको लगा दें हम सजनिया.
अंजुरी भर-भर गुलाल.........

कह दो सभी से तुम प्यार की ये बात,
कहीं भी रहो आओ, आज अपने द्वार,
राह ताके अपनों की अँखियाँ.
तुमको लगा दें हम सजनिया.
अंजुरी भर-भर गुलाल........                                    

-    - नवनीत नीरव -