सब कुछ तो अचानक ही हो गया,
जैसे कोई ख्वाब सुबह में घुल गया,
कुछ भी तो न बचा,
हमारे तुम्हारे दरम्यान,
सिर्फ,
स्याह सन्नाटे और रिक्तता के,
मानों इस समंदर के शोर में,
सब कुछ हो दब गया,
मैं देखता रहा अपलक,
तुम्हारे और मेरे शरीर के,
बीच की दूरी को,
विस्तार लेते हुए,
न जाने कितनी बातें,
अनकही रह गयीं,
दिल में रह गए,
कितने अरमान,
स्तब्ध सा खड़ा रहा गया मैं,
समंदर किनारे रेत पर,
निहारते हुए,
तुम्हारे पैरों के निशान।
-नवनीत नीरव-