शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

लाशें दुस्साहस नहीं करतीं

जोखिम है,
कुछ नया करने में,
शायद यही सोचते हैं हम,
बात इतनी -सी ही है,
तो फिर क्यों सोचे हम,
कुछ बदलाव की,
अपनी पहचान की,
अमूमन यही होता है न !
पहली दफ़ा हम असफल होते हैं,
या फिर मशहूर होना,
फितरत बन जाती है हमारी,
और हम निकल पड़ते हैं,
एक नए सफर पर......
पर ये सब इतनी आसानी से नहीं मिलता,
टूटने और जुड़ने का एक दौर है चलता,
तब जा कर शोहरत दस्तक देती है।

एक लाश ही तो है,
जो निर्बाध रूप से तैरती है,
पानी की सतह पर निरंतर,
बिना डूबे, बिना किसी जोखिम के,
जिन्दा शरीर तो डूबता है,
फिर ऊपर आता है ...
फिर डूबता है....
इन्हीं मझधार की लहरों के बीच,
डूबते उतरते हुए न जाने,
कितना कुछ सिखा जाता है,
और एक नए दौर की शुरुआत होती है।
अब जरूरत है हौसले की,
जिन्दा बने रहने की,
कुछ कर गुजरने की,
क्योंकि जिंदगी इंतजार नहीं करती है,
उसको तो गुजरना है,
वो गुजरती ही है,
ये सच है कुछ ही जिन्दगानियाँ,
शोहरत की हैं इबारत लिखतीं,
ये शाश्वत सत्य है ,
लाशें दुस्साहस नहीं करतीं।

-नवनीत नीरव-