सोमवार, 5 अप्रैल 2010

अलविदा

चंद कतरे ही हैं आंसुओं के ,
लेकिन आज मेरी आँख नम है,
सपने तो आज भी मेरे ही हैं,
पर उनमें दोस्तों का प्यार कम है.
जाने को तो सब जाते हैं,
पर इन रिश्तों की बात अलग है ,
साथ रहते हैं तो हँसते हंसाते,
जाने के बाद रुलाते बहुत हैं
चलते- चलते जैसे जेठ कि दुपहरी में,
कोई छतरी छीन गया हो ,
बैठे हों अकेले जब यादों के संग,
कोई दर्दीले नगमों से गमगीन कर गया हो.
कह गया हो कि फिर मिलेंगे,
पर कब मिलेंगे इसका पता नहीं?
अलविदा कहने को हाथ है उठते
पर दिल को बैठने से कोई रोकता नहीं.
जब बढते हैं हमारे बीच के फासले,
दिल सोचता है कि एक बार,
मुड कर वो देखेगा,
और वो सोचता है कि कहीं,
मेरा दोस्त ये न सोच ले,
इस बढती दूरी से,
कहीं मैं कमजोर तो नहीं पड़ गया,
इसी कशमकश में,
फासले और बढ़ जाते हैं,
कल तक जो साथ में थे,
आज थोड़े दूर हो जाते हैं,
इतने ज्यादा दूर तो नहीं,
पर दूरी,
जो शायद कम नहीं होती है,
कुछ वक्त लगता है,
इनके मिटने में,
पर कुछ तो स्थायी हो जाते हैं.
हमेशा के लिए .
मुझे शिकायत है उनसे,
जो चले जाते हैं ,
कोई ये नहीं कहता कि-
मैं आज रुक जाता हूँ ,
इतने दिनों से साथ रहा हूँ,
तो एक दिन और चलो जी जाता हूँ .
इस अनोखे सफर पर चलते हुए,
अब तो हम ,
इसी तमन्ना के साथ हम जीते हैं,
शायद किसी मोड़ पर मिल जायें,
वो दोस्त,
जो आंखें ही नहीं दिल भी भिंगोते हैं ,
जो आंखें ही नहीं दिल भी भिंगोते हैं .
- नवनीत नीरव-