सोमवार, 12 अगस्त 2013

एडिक्टेड : एक तस्वीर

एक गुजरती हुई “डीप ग्रे” सड़क,
सह्याद्री हिल्स रेंज की तलहटी से,
वादियों में पसरा हुआ रूमानी मौसम,
भूरे-सफ़ेद रेशे वाले भेड़ों के झुण्ड,
चोटी पर अटके हुए बादल का एक टुकड़ा,
और अरसे बाद हम-तुम एक साथ.

कुछ है हमारे-तुम्हारे दरम्यां,
जो रुक-रुक कर बरसता है,
चटख कर जाता है हरेक बौछार में,
गुजरते हुए मौसम का हरापन,
अपनी हथेलियों का मद्धम गुलाबीपन,
और दिल का कत्थईपन .

एक जिद मेरी ताजा तस्वीर की,
मालूम नहीं क्या करती हो तुम,
“संजोने भर से यादें बासी हो जाती हैं”,
शौक पल-भर से ज्यादा नहीं टिकता,
मस्तिष्क फ़िजूल बातें याद नहीं रखता,
तो सांसारिक कैमरे की क्या बिसात.

मुझे मालूम है बातें नाराज़ करती हैं,
फिर भी अक्सर कह जाता हूँ,
प्यार करने वाले शायद ऐसा नहीं कहते !
खैर, पोज देता हूँ तुम्हारी मुस्कुराहट पर,
खुद को थोड़ा संयमित करते हुए,
और देते हुए तुम्हें कुछ क्षणिक अधिकार.  

तुमको तस्वीर खिंचाने भी नहीं आती,
हर बार ये आँखें क्यों मुंद जाती हैं?,
दुबारा खुद को तैयार करता हूँ ये सुनते हुए,
एक अहसास जिसे तुम समझ नहीं पायी,
बंद आँखों से ही महसूस होती हो तुम,
और चेहरे पर उभरते हैं भाव तुम्हारे प्यार वाले.