सोमवार, 17 सितंबर 2012

समंदर का बचपना नहीं जाता


समंदर का बचपना नहीं जाता,
लहरें अठखेलियाँ करती जाती हैं,
उधम मचाती हुई शोर करती हैं,
देख जिसे पथिक क्षण भर ठहर जाता है,
अपने तमाम दुखों को भूल,
सिमट आता है उस जगह उस लम्हे में,
असीमित प्यार से सराबोर होता हुआ. 

समंदर विनोद करता है
सहसा भींगो जाता है,
अन्तर्मन को शीतल करता हुआ,
सागर मनोभावों को छूता है,
थोड़ी ही देर ठहरने वाला मुसाफिर,
जो पहले भींगने से परहेज करता था,
उसके संग बच्चा बन जाता है,
लहरों पर इधर-उधर भागता हुआ. 

समय बीतता जाता है,
समंदर नहीं थकता, 
पथिक बैठ जाता है किनारे पर,
निहारते हुए अल्हड़ बातूनी सागर को,
अंदर एक शांति महसूस हो रही है,
अब कोई जल्दी नहीं है उसे,
समंदर खेलता ही जाता है,
बिना थके बिना रुके,
सचमुच समंदर का बचपना नहीं जाता.  

-नवनीत नीरव-