गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

जिद्दी

अब कैसे तुझको समझाऊँ?
मेरे दिल तू तो जिद्दी है,
क्यों करता है उन बातों पे गौर?
जो मैंने यूँ ही कह दी है
पहले तू कहता है मुझसे,
कुछ कह दूँ तुझसे प्यार से,
जो कुछ सोचा है मैंने अब तक,
अपने प्यार के इकरार में,
बोलूं तो लगता है तुझको,
मैंने कुछ बात छुपाई है,
जब भी बोलूं मैं खुल कर हंस कर,
क्यों लगे तुझे मेरी गलती है
क्यों करता है उन बातों पे गौर,
जो मैंने यूँ ही कह दी है


मुझको तू तो जानता है,
मेरा स्वाभाव पहचानता है,
ये प्यार नहीं तो फिर क्या है ?
तू मुझको अपना मानता है
कुछ बुरा जो मैं कह जाऊं तुझसे,
फिर मैं पछताता हूँ दिल से,
इक टीस सी उठती है अक्सर,
कोई तीर चुभा हो मेरे शरीर में,
मान तेरा मैं करता हूँ,
दिल ही दिल में मरता हूँ,
जिस दिन होवे बात तुझसे,
इक दर्द सा दिल में सहता हूँ,
अब तो समझ जा बात मेरी,
मैंने दिल की हर बात बता दी है
क्यों करता है उन बातों पे गौर,
जो मैंने यूँ ही कह दी है

-नवनीत नीरव -