यह सब "चलन" है यहाँ का,
तो क्या ऐसा ही चलता रहेगा,
सदियों से होता आया है जो ,
पर क्या थोड़ा भी न बदलेगा,
कुछ अच्छी , कुछ बेतुकी बातें,
इन्हें ढोने का दौर कब तक चलेगा.
इतिहास गवाह है,
जो समय के साथ नहीं बदलता,
थोड़ा लचीला नहीं होता,
या तो समूल नष्ट हो जाता है,
या अकेला पड़ जाता है,
भले ही उसके बाद
आने वाली नस्लें ढूंढ लें उसे ,
किसी नालंदा के खंडहर में,
हडप्पा के अवशेषों में,
या फिर
अजंता-एलोरा की गुफाओं में.
किसी नालंदा के खंडहर में,
हडप्पा के अवशेषों में,
या फिर
अजंता-एलोरा की गुफाओं में.
बहता जल निर्मल है,
यह शुद्धिकरण की प्रक्रिया है,
अनुभवों के किनारों से गुजर कर,
नव -पुरातन को समाहित करता है,
नया दौर भी उसी सीढ़ी से,
दौड़ता- गुजरता, चलता है,
संतुलित पग रखता है,
मनुष्य में असीम संभवनाएं हैं,
क्यों न सब खुद को पहचानें,
पुरातन से प्रेरणा ले कर,
कुछ अद्वितीय बना जाएँ...
क्यों न सब खुद को पहचानें,
पुरातन से प्रेरणा ले कर,
कुछ अद्वितीय बना जाएँ...
- नवनीत नीरव-