सोमवार, 7 सितंबर 2009

जिंदगी और रंग

दिल दिमाग के दरम्यान,
सिमट आती है जिंदगी,
जब अपनी सोच के जालों में,
उलझ सी जाती है जिंदगी।

मन की सतहों पर,
गुजरे पलों के स्केच से बनते हैं,
धीरे -धीरे उनमें फिर,
यादों के रंग भरते हैं,
अलग-अलग अनोखे रंग,
कुछ चटकीले, कुछ फीके रंग,
कुछ नए रिश्तों से हल्के रंग,
जिन्हें
बीतते लम्हें पक्के कर जाते है,
कुछ पुराने रिश्तों से गाढे रंग,
जो यादों की बारिश में धुल जाते हैं,
कुछ हँसते मुस्कुराते रंग,
कुछ रोते रुलाते रंग,
इसी रुदन हँसी के बीच,
सरकती जाती है जिंदगी।

-नवनीत नीरव -