रविवार, 28 जुलाई 2013

पिया तोरी बंसवरिया


घर के पश्चिम, सिरहाने पिया,
तूने जो लगवाई बंसवरिया,
ये चरर-मरर बाजे,
आठों पहर, दुपहरिया पिया,
ये चरर-मरर बाजे.

झर-झर बाजे इसके,
हरे-हरे पात,
इतराती-इठलाती रहे,
सँवर-सँवर दिन-रात,
बन गई बैरन, बिरहिनिया पिया,
ये चरर-मरर बाजे.

काम-क़ाज न फ़िक्र है कोई ,
बेदागी- सी भरमाये,
आँचल, चुनरी लहरा-लहरा,
हवाओं संग पेंग लगाये,
अबके सावन भेजो मोहे नैहर पिया,
ये चरर-मरर बाजे.

कल ही बिहाने बढ़ई बुलाउंगी,
बंसवरिया  कटवाउंगी,
तब पाऊँगी चैन,
पूस, जेठ, भादो अन्हरिया,
क्या कहूँगी जो पूछे कोई,
क्यों तू कटवाये बँसवरिया.

जो चरर-मरर बाजे. 

-नवनीत नीरव-