गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

वर्ल्ड कप २०११


जज्बा जो सियाचिन के जांबाजों में है,

जूनून जो शिकारी तीरंदाजों में है,

जोश वैसा जब हम दौड़े थे पहली बार,

अपने स्कूल के किसी रेस में.

सहनशक्ति वैसी जब धर दिया था ,

अपने नंगे पाँव कभी गर्म रेत पर अचानक .

एकजुटता जब हमने दिखाई थी कालेज के दिनों में ,

पूरे बैच के साथ वॉक आउट कर बिना सोचे समझे.

अपनापन जब वैचारिक मतभेद होने पर भी,

'हेलो' बोलते थे सामने से गुजरने पर,

या फिर एक साथ एक ही गैलरी पर,

जलाते थे खुशियों के दिए बिना मुखातिब हुए ,

किया कुछ ऐसा भी बिना दिखावे के या किसी प्रोत्साहन के ,

केवल आत्म संतुष्टि के लिए .

आओ, चलो एक बार फिर से जोड़ें,

अपनी सारी अंगुलियां,

कुछ पुरानी यादों में रंग भरने के लिए,

एक दुआ करने के लिए,

कि फिर से मौका मिले हम सबको,

वर्ल्ड कप को अपनी अंजुली में भरने के लिए,

एक अलग अंदाज हमारा, काफी है उपस्थिति दिखाने के लिए,

टीम इण्डिया को प्रेरित करने के लिए,

उनका मनोबल बढ़ाने के लिए........

-नवनीत नीरव -

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

बसंत का गीत





चलो, एक गीत गुनगुनाएं इस बसंत के नाम,


गेंदे के फूल संग भेजें, पलाश को पैगाम


कुछ हमारी तुम्हारी बातें भी हवाएं सुने,


कुछ बहारें अब पत्तों को छू लें,


चलो कुछ ऐसा करें ,कोई न रह जाये गुमनाम.


चलो एक गीत गुनगुनाएं, इस बसंत के नाम।







कोयल की कूक ,बगिया गुंजार कर जाये,


आम्र मंजरियाँ सवंरकर अब बारात सजाएं,


मुस्कुराकर फूल सबके स्वागत में बिछ जायें,


सरसों पीले लहंगे में, दिन भर धूप को भरमाये,


महुए से मत्त हुए ,कोई रंग जाये बसंती शाम,

चलो एक गीत गुनगुनाएं, इस बसंत के नाम।




खेतों में हरतरफ बैंगनी तीसी खड़ी है ,


अरहर की पीली फूली, उसके सीने चढ़ी है,


नवयवना अब चुनरी संभाले निकली है,


डहेलिया, गुलदाउदी सब शर्माने लगी हैं,


अबके डहकता टेसू, बरसायेगा रंग सरेआम,


चलो एक गीत गुनगुनाएं, इस बसंत के नाम।