शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

रूमानी शाम

भींगा मौसम चुप हो गया,
धुंधली शाम रूमानी है,
बात करें उन लम्हों की,
जो अपने दिल की नादानी है।

पता नहीं क्यों रुक पाती थीं,
मेरी तुम्हारी प्यार मुहब्बत,
सीधे दिल पर जो छप जाती,
नग्मा थीं या अशआर-ए-इबादत,
गुमसुम से इस नम मौसम में,
हर ख्वाब लगे आसमानी है।

याद पड़े वो घर -आँगन,
हर शाम तेरा चुप-चुप आना,
दिल का होना मायूस सदा,
जब मुश्किल हो तुझसे मिलना,
बातें करना हंसकर खुलकर,
ज्यों जान-पहचान पुरानी है।

वो भी एक भींगा मौसम था,
जब भींग रहे थे हम दोनों,
लिए साथ छूटने का गम,
बिखर रहें हों पत्ते मानों,
मन ने दिल को तब समझाया,
हर प्रेम की यही कहानी है।

-नवनीत नीरव-