सोमवार, 18 मई 2009

चाहत पंछी की

बस्तियों से गुजरना हमारी चाहत नहीं,
बागों में विचारना हमारी चाहत नहीं ,
समंदर
की लहरों '' अनजानी राहों पर,
सबको
गीत सुनाना हमारी चाहत नहीं

हमारी
चाहत तो है बस एक ही,
शाम
ढले नीड़ों में लौटने की,
जहाँ
की हर खुशियाँ समेटे हुए,
चुग्गा
और दानों की तलाश कर,
जहाँ
बच्चे इंतजार करते हमारा,
प्यार
की चाहत में चोंच खोल कर।

-
नवनीत नीरव-