रविवार, 19 अक्तूबर 2008

अकेलापन


अकेलापन


अकेलापन सुकून देता है।

कुछ लोग बेबाकी से ,

या शायद,

प्रभाव बनाने के लिए,

सीधे सीधे कह कर निकल जाते हैं

जब- जब मैंने सोचा अकेले में

अपने लॉन की बेंच पर बैठकर ,

तब- तब मेरी नाव जिंदगी की

यादों के भंवर में फँस जाती है।

शायद अकेलापन मन को रोकता है

अतीत के चित्र दिखने के लिए,

पर जिंदगी उसी की ढलानों पर

सरपट दूर निकल जाती है

-नवनीत नीरव -

एक पाती

कभी सोचता हूँ एक पाती लिखूं ,
सावन की रिमझिम फुहारों के नाम,
हर साल मिलने आती हैं मुझसे ,
कभी भी कहीं भी सुबह हो या शाम,
छत के मुंडेरों पर, खेतों में अमराई में ,
अनजाने सफर में रस्ता गुमनाम,
कही भी रहूँ अक्सर खोज लेती हैं मुझे ,
इसे प्यार कहूँ की दूँ कोई नाम,
कुछ कहने में शर्म आती है मुझे ,
कैसे कहूँ अपने मन की विकल तान,
इसलिये सोचता हूँ इक पाती लिखूं ,
सावन की रिमझिम फुहारों के नाम।

-नवनीत नीरव -