रविवार, 10 मार्च 2013

ऐ गोरी!

ऐ गोरी!
मुस्काए तू या तोरे नैना,
घर आंगन बाजार दुपहरी,
चारों पहर मोरे छीने चैना.


लिपट झपट तू चलत फिरत है,
मणि खंजन मटकाय,
सीधे-सुकुमार मोर जियरा पर,
कनक कटारी चल जाय.
अवचेतन पर आघात करे ये ,
हो उषा, संध्या , स्याह सी रैना.
ऐ गोरी!
मुस्काए तू या तोरे नैना......

कभी कलाई-उँगलियां थिरकाय,
कभी नयन फिरकी सी घुमाय,
चहरे- होठों के भाव बदल कर,
जाने कौन सी बतिया बतियाय,
ये नवयौवन की रीत है कोई,
या सम्मोहजादू-टोना 
ऐ गोरी!
मुस्काए तू या तोरे नैना......


-नवनीत नीरव-