बुधवार, 17 जुलाई 2013

प्राथमिक पाठशालाओं का आँखों देखा हाल

१. झुग्गी झोपड़ी सा स्कूल 

एक बड़ा सा शहर,
शहर के बीचों बीच एक नाला,
अधखुला, बदबूदार, कचरे से पटा हुआ,
दायीं ओर एक विद्यालय,
जहाँ जमा हैं कुछ बच्चे,
नीली पोशाक में सीलन भरे बरामदे पर,
थालियों में लिए मध्याह्न भोजन,
इतनी गन्दगी कि खड़ा होना मुश्किल,
तो भला पढ़ाई और भोजन...?
पूछने पर कोई सटीक जवाब नहीं,
शिक्षक को बस अपनी ड्यूटी से मतलब,
समुदाय को बच्चों की छात्रवृति से,
बड़ी इमारत के वातानुकूलित कमरों के बाबू,
इसे अपनी उपलब्धि बताते हैं,
जितने अधिकारी उतने मॉडल गिनाते हैं,
बच्चों का क्या है?
कल बड़े हो जायेंगे,
थोड़ा सहेंगे पर बहुत कुछ समझ जायेंगे,
क्योंकि भविष्य में तो उन्हें भी यही सब करना है.

२. एक कमरा तीन स्कूल

राजधानी में यही होता है भाई!
एक कमरा, तीन स्कूल, दो शिफ्ट,
दो स्कूल, दस कक्षाएं,
मिलजुलकर छः टीचर्स पढ़ाएं,
ये तो भला हो बच्चों का,
जो उनके सहपाठी कभी-कभार आयें,
सामने शिलापट्ट पर छपा है,
मुख्यमंत्री का नाम, उद्घाटन तिथि,
पर यह लिखना छूट गया कि,
किस विद्यालय का उद्घाटन ?
अभी एक शिकायत सुनी थी टीचर्स से,
पता नहीं सच है कि झूठ,
एक बच्चा तीन-तीन स्कूलों में
छात्रवृति और पोशाक है लेता,
पर कोई यह क्यों नहीं बताता,
वही बच्चा तीन-तीन विद्यालय है चलाता.

३. सामुदायिक भवन बना पाठशाला

"इस पाठशाला का अपना भवन नहीं है,
यह सामुदायिक भवन में चलता है"
इसलिए यहाँ बिजली नहीं आती है,
फर्श टूटी पड़ी है मरम्मत के बगैर,
दीवारों पर उपले सटे हैं,
पीछे जानवरों का तबेला है,
कूड़े-कचरे का ढेर,बजबजाती हैं नालियां,
जमा हुआ गोबर, भिनभिनाती हैं मक्खियाँ,
इतनी मिली जुली बदबू,
कि तय कर पाना मुश्किल,
कि कौन-सी किधर से आ रही,
क्या सरकारी, क्या गैर सरकारी,
क्या सामुदायिक, क्या व्यक्तिगत,
कोई नहीं सोचता इन मासूमों की,
किसी तरह पेट भरा और एक दिन जी लिया,
बचा-खुचा जो बचा, बोरे में कस लिया,
किस्मत रही अच्छी तो नींद से जग जायेंगे,
नहीं तो सपनों संग लम्बी नींद सो जायेंगे,
एक अपूर्ण खवाब तो शायद,
मरने पर सबके साथ जाए,
जीते जी कुछ ढंग का मिलने से तो रहा.

-नवनीत नीरव-