गुरुवार, 2 जनवरी 2014

पुरानी इमारतों से कभी आसरा लगाया करो..

अपने चेहरे के आईने यूँ ही चमकाया करो,
दरवाजे खुले हैं दिल के आया जाया करो .

लोग रोते बिलखते हैं दिल ए मजबूर होकर,
तमाम मायूसियों को भी गले लगाया करो.

खुदा भेजता मजारों पर नेमतों की चिट्ठियाँ,
कभी इस बहाने ही सही मिलने जाया करो.

कल शहर की बारिश में भींगे हम छप्पर तले ,
पुरानी इमारतों से कभी आसरा लगाया करो.

-नवनीत नीरव