शनिवार, 25 अप्रैल 2009

खरगोश के बच्चे (सरकारी स्कूलों में मध्याह्न भोजन का हाल.....)


(मैं जनवरी -फरवरी  2009 के महीने में अपनी गाँव से सम्बंधित ट्रेनिंग के लिए झारखण्ड राज्य के पलामू जिले के रबदी गाँव गया था ११ सप्ताह तक वहां रुक कर मैंने, गाँव से सम्बंधित हर पहलू का अध्ययन किया कई बार वहां के प्राथमिक विद्यालय पर भी गया वहां चल रहे मध्याह्न भोजन का हाल देखकर तो मैं दंग रह गया था यह कविता मैंने उसी को देख कर लिखी थी)

बचपन में इक बार,
असफल कोशिश की थी मैंने,
खरगोश के इक बच्चे को पालने की
सारी दुनिया की खुशी,
दिखती थी मुझको,
उसकी गोल लाल आँखों में
मुलायम सफ़ेद रोयें ,
इक सुखद एहसास दिलाते,
मानों वह अपना हो
जाने कितनी देर तक बैठता,
हरी घास पर ,
उसके संग
उछलता -कूदता वो भी ,
मानों दिखा रहा हो मेरे प्रति ,
अपना आभार
पर उसपर नजर थी,
आस-पास मंडराते,
इक बाज की
जो इक दिन ,
ले उड़ा उसे,
मेरी आंखों के सामने से
रोया था फूट-फूट कर ,
जाने कितने दिन तक ,
उसके गम में
यही सोचकर,
उस मासूम का ,
क्या हाल हुआ होगा?
वही मंजर,
आज भी देख रहा हूँ ,
जहाँ कई बाज़ हर रोज़,
ले उड़ रहे हैं ,
नन्हें मासूमों के बचपन को ,
स्कूलों से
दिल दुखता है ,
जब देखता हूँ ,
पालनहार को ,
अपने देश के भविष्य का ,
गला घोंटते हुए
और बच्चे ,
हर बात से बेखबर,
स्थितियों से समझौता कर ,
हर हाल में मिलते हैं मुझे ,
मुस्कुराते हुए
मुस्कुराते हुए

-नवनीत नीरव-