बुधवार, 23 सितंबर 2009

गाँव की याद


तन झुलसाती गर्मी बीती,
और ये पावस बीत गया,
यहाँ अजब सी हवा चली,
एक क्षण मैं कुछ सोच न पाया ,
कल तक जिन गलियों में खेला,
उनको कैसे मैं भूल गया,
साथ छूटने का गम है मुझको,
पर उसने भी न मुझे बताया,
भूल चला था मैं तुझको भी,
मेरे गाँव, आज मुझे तू याद आया।

तुझ संग कभी रहा न अकेला,
चाहे दिवाली हो दशहरे का मेला
धूप सुबह की, शाम पंक्षियों की कतार,
मन होता था हर्षित पा खुशियाँ हजार,
पर आज त्योहारों की शाम में,
तुझसे दूर बैठा हूँ एकांत में,
न कोई चहल-पहल न कोई मेला,
निहारता रहा हूँ शून्य को अकेला,
शायद कोई मुझसे मिलने आए,
बचपन की यादें ताजी कर जाए,
इसी सोच में मैंने तुझे भुलाया,
पर कोई मुझसे मिलने न आया,
भूल चला था मैं तुझको भी,
मेरे गाँव, आज मुझे तू याद आया।

-नवनीत नीरव -