मंगलवार, 28 अप्रैल 2009

तेरे इंतजार में

अक्सर खड़ा पाता हूँ ख़ुद को,
कल्पनाओं की देहरी पर ,
अदृश्य रंगों की तलाश में ,
हर दिशा में उभरते -मिटते,
अधूरे बिम्बों को निहारते,
शायद कहीं मेरे प्यार सा,
कोई रंग मिल जाए

धूप गुलाबी है ,ख्वाब आसमानी हैं ,
स्वप्न रेतीले टीले हैं,
सोच बहता पानी है ,
सब अपनी-अपनी जगह बदलते ,
जब मन पर वश चलता है ,
हम भी रुक-रुक पीछे मुड़ते,
ज्यों विरह पहर सरकता है।
कभी चिडियों की कतारों के संग,
कभी बारिश की फुहारों के संग ,
कभी तारों की लड़ियों संग,
कभी मासूम तितलियों के संग

इसी सोच में शायद ,
इस क्षण तू जायेगी ,
सहेज कर रखे हैं जो ख्वाब,
उनमें रंग भर जायेगी
सच बताऊँ कभी -कभी मन ,
गीला हो जाता है प्यार में,
वेदनाएं जब सही जाती हैं ,
तेरे इंतजार में ............... ।

-नवनीत नीरव -