रविवार, 28 नवंबर 2010

ख्वाबों के छुट्टे

बचपन से युवा बनते-बनते,
जाने कितने सयाने,
कितने बड़े ख्वाब,
संजोये थे मैंने ,
कोशिश यही थी कि,
कभी इनसे,
कोई बड़ी खुशी खरीदूंगा.
कई सालों तक इन्हें,
संभाल कर रखता रहा,
इन्हें खर्च करने से बचता रहा,
डर था कहीं इनके खुले हो गए तो,
ये सारे छोटी-छोटी खुशियों में ही,
जल्दी ही खर्च हो जायेंगे .
जाने कितने अपनों ने,
मुझे जानने वालों ने,
उधार पर मेरे ख्वाब मांगे ,
पर बड़ी ही निष्ठुरता से मैंने,
मना कर दिया उनको हर बार,
कई बार रस्ते बदल दिए मैंने,
जिधर मांगने वाले मिलते,
इतने सालों बाद,
हालात से उलझने के बाद,
अब ये समझ में आया,
छोटी-छोटी खुशियों से ही,
बड़ी खुशी मिलती है,
आज चाहता हूँ
हर छोटी खुशी समेटना,
पर किसी के पास,
मेरे बड़े ख्वाबों के छुट्टे नही हैं.

-नवनीत नीरव-

बुधवार, 3 नवंबर 2010

चलो, कुछ रोशनी बांटें

बात इतनी सी बतानी है मुझे,

कि बाँटने से प्यार बढ़ता है,

घटता है तो केवल मन का क्लेश औ दर्द।

तन्हाइयां और अकेलापन तक भी,

बांटे जाते हैं आजकल।

जब इतना कुछ बंट रहा है,

चारों ओर हर पहर,

तो क्यों न मिलकर हम –तुम?

कुछ रोशनी बांटें,

इससे तो दिलों का अँधेरा छंटता है।

कुछ खास मेहनत नहीं होती है,

इसे बांटने में,

इक खुशमिजाज दीया,

मुस्कुराकर हौले से ,

अपने पास बैठे गुमसुम,

उदास से दीये को चूमता है,

बस वह भी खिलखिला उठता है,

और फिर वो दोनों पूरे रात बैठ,

न जाने कौन सी बात करते हैं,

कि सारी फिजां ही बदल जाती है,

दीये जलते ही जाते हैं।

दीपमालिकायें सजती ही जाती हैं.

उस वक्त तो केवल,

प्यार की रोशनी बंटती है,

हर तरफ हर्षोल्लास ही रोशन होता है।


चलो क्यों न इस दीवाली,

कुछ और दीये जलाएं जायें,

कई घर जो छूटे पड़े हैं,

आज भी वृष्टिछाया में,

उनको भी रोशन कर जायें । ।

-नवनीत नीरव -