सोमवार, 11 अक्तूबर 2010

दुल्हन की विदाई

रात्रि के प्रस्थान के साथ,

मैं देख रहा हूँ,

एक दुल्हन की विदाई,

डूबा है पूरा परिवार गम में,

दुल्हन की सिसकियों के साथ,

आंसुओं से नम है,

पिता का रोबीला चेहरा,

और माँ की है,

आंसुओं की बरसात

बहने और सम्बन्धियों की भी,

सुनी जा सकती है सिसकी,

समुद्र के सामान गंभीर भाई की आँख,

अब छलकी की तब छलकी

धीरे-धीरे दुल्हन के साथ,

समय भी हो रहा है विदा,

ह्रदय को विदीर्ण कर रही,

सबकी एक ही अदा,

बचपन से लेकर आजतक,

बहन के प्यार से है जो बंधा,

भरी मन से उसी भाई ने,

दिया डोली को कंधा

दुल्हन के साथ –साथ,

बारात भी चली गयी,

जाते- जाते गमों की,

सौगात छोड़ गयी,

देख कर इस दृश्य को,

मेरी भी आँख भर आयी,

किसी ने पूछ ही लिया,

क्या देख रहे हो?

अनायास ही निकल पड़ा,

मेरे मुंह से,

किसे दुखी नहीं करेगी यह विदाई,

क्योंकि मैं भी तो हूँ एक भाई

शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

रूमानी शाम

भींगा मौसम चुप हो गया,
धुंधली शाम रूमानी है,
बात करें उन लम्हों की,
जो अपने दिल की नादानी है।

पता नहीं क्यों रुक पाती थीं,
मेरी तुम्हारी प्यार मुहब्बत,
सीधे दिल पर जो छप जाती,
नग्मा थीं या अशआर-ए-इबादत,
गुमसुम से इस नम मौसम में,
हर ख्वाब लगे आसमानी है।

याद पड़े वो घर -आँगन,
हर शाम तेरा चुप-चुप आना,
दिल का होना मायूस सदा,
जब मुश्किल हो तुझसे मिलना,
बातें करना हंसकर खुलकर,
ज्यों जान-पहचान पुरानी है।

वो भी एक भींगा मौसम था,
जब भींग रहे थे हम दोनों,
लिए साथ छूटने का गम,
बिखर रहें हों पत्ते मानों,
मन ने दिल को तब समझाया,
हर प्रेम की यही कहानी है।

-नवनीत नीरव-