बुधवार, 6 जनवरी 2010

इस बार की सर्दी...


कितनी ही सर्दियाँ आई गयीं,
किन्तु इस बार की सर्दी का,
अंदाज कुछ निराला है ,
कोहेरे से ढका है पूरा दिन ,
और रात को पड़ता पाला है ।

सूरज की क्या बिसात जो,
लोगों को दर्शन दे जाये,
कैसे झांके चाँद बेचारा ?
कुहासे ने घूंघट जो डाला,
कहीं मफलर, कहीं स्वेटर,
कहीं टोपी , कहीं चादर,
कितने ही अंजन चेहरों को,
सर्दी ने रच डाला है ।

दृग शांत खामोश खेत हैं,
सड़कें और बाजार बंद हैं ,
गलियां सूनी पनघट सूना,
लोगों की जुबान बंद है,
चीड़ों की चहचहाहट सुने,
कुछ दिन हो गए,
मानों सबकी मुंह पर किसी ने,
बंद कर दिया ताला है ।


आइये चलें ,
शहर की फुटपाथ की तरफ ,
कडकडाती सर्दी से कांपते चिथड़ों में,
कितने ही खामोश दफ्न चेहरे,
और कितने ही लोग मिलेंगे ,
अलाव के पास ,
जो शायद अब बुझने को है।
छोटे -छोटे फुटपाथी पिल्ले,
जो शायद,
सर्दी से लड़ने के लिए ,
तैयार हो रहे हैं ।
सूरज निकलने का बाट जोहते ,
बूढ़े अपाहिज और लाचार भिखारी ,
तय नहीं कर पा रहे,
किसे कोसें ?
सूरज को , ठंढ को ,
या अपने भाग्य को ,
जिसने उनकी मरती आशाओं पर,
पानी फेर डाला है ।

-नवनीत नीरव -

शुक्रवार, 1 जनवरी 2010

नव -वर्ष की शुभकामनाएँ



बीते हुए वर्ष की , दिल में उठे हर्ष की,
चिर-पुराने बंधुओं की , खट्टे -मीठे अनुभवों की,
अविस्मरणीय यादों कीनव मिले आगंतुकों की,
पूरे वर्ष मन में  जानेजन्मीं कितनी भावनाएँ ?
आपको नव -वर्ष की शुभकामनाएँ ।।

गत सर्दियों के ठिठुरन की,
शर्माते सूरज और ठंढी हवाओं की,
नीड़ों में दुबके पंछी और छोटे -छोटे पिल्लों की,
गर्म -गर्म चाय और कॉफी के बुलबुलों की ,
धूप और बादलों में मची होड़ की,
खिचड़ी में पतंगों के आपस के दौड़ की,
सुनसान सड़कों और खामोश रातों की ,
कितनी ऐसी यादें जो भूलीं  जाएँ।
आपको नव -वर्ष की शुभकामनाएँ ।।

जाड़े के संग -संग आए ऋतुराज की ,
मदमाते मंजर और सुलगते पलाश की ,
मलयांचल से मदमाती बहती हवाओं की ,
मदहोश नवयवना और फ़ागुनी फिज़ाओं की ,
यौवन के दिन और अंगड़ाई के शाम की ,
मत्त हुए महुओं और पीपल के पल्लव की ,
कोयल की कूकों और कौवों के वाचन की ,
कवियों की , जिन्होंने रची ऐसी रचनाएँ।
आपको नव -वर्ष की शुभकामनाएँ ।।

रंगों को करके फीका आये ग्रीष्म की ,
क्रोधित हुए सूरज, गरमाती हवाओं की ,
दहकते हुए शहर और तपते हुए गाँव की ,
पिघलता हुआ आसमान, पेड़ों के छाँव की ,
बढ़ते हुए दिन और छोटी होती रातों की ,
झुलसती हुई धरती और सूखते हुए तालों की ,
ठंढे कोल्ड्रिंक्स और लस्सी के मिठास की ,
ग्रीष्म अवकाश कीजिसमें जहाँ चाहे घूम आएँ।
आपको नव -वर्ष की शुभकामनाएँ ।।

ग्रीष्म की विदाई पर आई वर्षा रानी की,
सावन के झूले संग झूलती नवयवना की,
कड़कती हुई बिजलियाँ ,गरजते हुए मेघों की ,
चमकते हुए इन्द्रधनुष , छमकती हुई बूंदों की,
टर्राते मेंढक और कूकते हुए मोरों की ,
झूमते किसान और धान के खेतों की,
भींगते हुए पेड़ और टपकते हुए छप्पर की,
हरे -भरे मन की , जो लगता है अभी झूमें गाये 
आपको नव -वर्ष की शुभकामनाएँ ।।

-नवनीत नीरव -