बुधवार, 3 नवंबर 2010

चलो, कुछ रोशनी बांटें

बात इतनी सी बतानी है मुझे,

कि बाँटने से प्यार बढ़ता है,

घटता है तो केवल मन का क्लेश औ दर्द।

तन्हाइयां और अकेलापन तक भी,

बांटे जाते हैं आजकल।

जब इतना कुछ बंट रहा है,

चारों ओर हर पहर,

तो क्यों न मिलकर हम –तुम?

कुछ रोशनी बांटें,

इससे तो दिलों का अँधेरा छंटता है।

कुछ खास मेहनत नहीं होती है,

इसे बांटने में,

इक खुशमिजाज दीया,

मुस्कुराकर हौले से ,

अपने पास बैठे गुमसुम,

उदास से दीये को चूमता है,

बस वह भी खिलखिला उठता है,

और फिर वो दोनों पूरे रात बैठ,

न जाने कौन सी बात करते हैं,

कि सारी फिजां ही बदल जाती है,

दीये जलते ही जाते हैं।

दीपमालिकायें सजती ही जाती हैं.

उस वक्त तो केवल,

प्यार की रोशनी बंटती है,

हर तरफ हर्षोल्लास ही रोशन होता है।


चलो क्यों न इस दीवाली,

कुछ और दीये जलाएं जायें,

कई घर जो छूटे पड़े हैं,

आज भी वृष्टिछाया में,

उनको भी रोशन कर जायें । ।

-नवनीत नीरव -