शनिवार, 4 अप्रैल 2009

स्वप्न सुंदरी

हरी -हरी वादियों में ,
दूधिया आँचल लहराते,
दूर से,
भागी चली आती हो ,
मन की कल्पनाओं से,
आंखों में उतर आती हो ।
लगता है अभी,
मेरे कानों ने सुनी,
तुम्हारी खिलखिलाहट,
जैसे मन्दिर में एक साथ,
घंटियाँ खनखनाती हों ।
शीतल मंद हवा ने,
चुपके से मुझसे कहा,
तुम मेरे पास ही हो,
मैं आवाज देता हूँ,
तुम्हें,
पर गहरी चुप्पी,
शायद तुम शर्माती हो ।

-नवनीत नीरव-