गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

इस वर्ष में...

इस वर्ष में जो कुछ भी किया,
गर ना भी करता,
तो क्या बुरा होता?

जैसे नए साल की एक डायरी,
कि जिसके दो-चार पन्ने रंगकर,
रख दिया आलमारी के कोने में,
गर दर्ज़ कर जाता कुछेक पल
तो क्या बुरा होता?

कुछ जो तय किया था,
एक साध्य की जुगत,
फिर खोज के सारे किरदार,
पलायन ना कर जाता,
तो क्या बुरा होता?

उलीचता सुवर्णरेखा के अनंत रेत,
बारहों महीने बन साधन,
पूछते हुए हर बार खुद से,
कि जो ये हुआ न होता,
तो क्या बुरा होता ?


-नवनीत नीरव- 

रविवार, 27 दिसंबर 2015

खुद के गुम होते निशान


कहीं पढ़ा था किताबों में
खोजोगे तो मिलेगा
शायद तभी से उसके तलाश की
योजना बना रहा हूँ
मेरे हिसाब से जो गुम हो गया है
जिक्र जिसका अक्सर कर जाता हूँ
किसी मॉल में बैठकर
ऑर्डर देते हुए कैपचिनो
या फिर मेट्रो के लंबे सफर में
वक्त काटने खातिर किए गए गप्प में
कि गाँव गुम हो गए, निशान रह गए
इस हकीकत से अनभिज्ञ  
कि गुम तो मैं गया हूँ।
अपने गाँव के बाहर की,
किसी भूल भूलैया में,
जहां से अब केवल
नजर आते हैं मुझको,
खुद को तसल्ली देने वाले
अतीत के कुछ निशान।  


-नवनीत नीरव- 

बुधवार, 23 दिसंबर 2015

जब मैं प्रेम में पड़ा

पहली बार,
जब मैं प्रेम में पड़ा,
उन्हें पता चला
उन्होने मेरे कान में कोई मंत्र फूँका
“जवानी के चौखट पर यह सबके साथ होता है।“
कोई टूटता रहा,
मैं साबुत बच गया।

दूसरी बार
जब मैं प्रेम में पड़ा,
उन्हें मालूम हुआ,
उन्होने मुझे एक जंतर दिया,
“घर की इज्जत तो पलीत न करो।“
कोई तबाह हुआ,
मैं फिर बच गया।

मुझे फिर प्रेम हुआ,
जवानी की चौखट के ठीक बाहर,
उन्हें मालूम था,
उन्होने हवन कराया,
मेरी कुंडली दिखाई,
कुंडली में नीच ग्रह का स्वामी केतू बैठा था।
अबके बार कोई नाव किनारे लगी,
वे हताश थे।
सचमुच, प्रेम करना एक नीच कर्म है।

-नवनीत नीरव-