बूंदों की पायल लेकर,
मग्न हो उनकी झंकार में,
बादल की डफली लेकर,
बना नया फनकार मैं,
विदा हो रही गर्मी के संग,
सावन की बारात में,
गाँव मैं बरसों बाद गया था,
भींग गया बरसात में ।
बूंदों की ऐसी धूम मची,
हर शख्श वहां दीवाना हुआ,
मेघों की छतरी लेकर,
मौसम भी तो मस्ताना हुआ,
अच्छत छींट रहा धरती पर,
वो मेहमानों की शान में,
बिजुरी बाँट रही थी सवेरा,
हर घड़ी हर पल रात में,
गाँव मैं बरसों बाद गया था,
भींग गया बरसात में ।
टप- टप करती बूंदों ने,
अलग समां बांधा महफ़िल में,
झींगुर साध रहे थे स्वर,
शहनाई संग नई बंदिश में ,
मोरों ने भी ठान रखी थी,
झूमेंगे झूलों के मौसम में,
पानी पानी गाँव हो गया,
दुल्हन के विरह अहसास में,
गाँव में बरसों बाद गया था,
भींग गया बरसात में ।
-नवनीत नीरव -