भींगा मौसम चुप हो गया, धुंधली शाम रूमानी है, बात करें उन लम्हों की, जो अपने दिल की नादानी है।
पता नहीं क्यों रुक पाती थीं, मेरी तुम्हारी प्यार मुहब्बत, सीधे दिल पर जो छप जाती, नग्मा थीं या अशआर-ए-इबादत, गुमसुम से इस नम मौसम में, हर ख्वाब लगे आसमानी है।
याद पड़े वो घर -आँगन, हर शाम तेरा चुप-चुप आना, दिल का होना मायूस सदा, जब मुश्किल हो तुझसे मिलना, बातें करना हंसकर खुलकर, ज्यों जान-पहचान पुरानी है।
वो भी एक भींगा मौसम था, जब भींग रहे थे हम दोनों, लिए साथ छूटने का गम, बिखर रहें हों पत्ते मानों, मन ने दिल को तब समझाया, हर प्रेम की यही कहानी है।
रिश्ते जिनको हम, पिछले कुछ महीनों से, निभाने की कोशिश कर रहे हैं, अब तो वो कभी इ-मेल या फिर, मोबाइल की घंटियों से उलझे लगते हैं. थोड़ी बहुत बातें इधर –उधर की, और फिर निरुत्तर, जैसे क्या बात करें ? जिसे हम सुलझाना तो चाहते हैं, पर हमारे बीच की दूरी, उसे और उतनी ही उलझा जाती है, जैसे माजी (spider) के जालों में, फंसा कोई पतंगा, बाहर निकलने की कोशिश में, अपनी जान गवां देता है, वो सुनहले लंबे पंख, जिसे कुदरत ने दिए हैं, ऊँची उड़ान भरने की खातिर, वही उसे जालों में इस कदर उलझाते हैं, कि वह बेबस हो दम तोड़ जाता है, क्या उसे उस वक्त अपनों की याद न आती होगी, जिनको उसने बीतते समय के साथ, ऊँची उड़ान की खातिर, पीछे छोड़ दिया था. कभी-कभी अतीत के साये, इसी तरह मुझे घेर लेते हैं, पुराने यादों की सिलवटें, गुजरे पलों की याद दिलाती है, कही इस व्यावसायिक जिंदगी के, पंख लगाकर, उड़ता हुआ, इतनी दूर न निकल जाऊं, जहाँ ये मेल- मोबाइल कुछ भी न हो, आपकी यादें तो जरूर होंगी, पर कोई अपना नहीं होगा, आप भी नहीं.......
हर रोज सुबह –सुबह,
चौराहे पर दिखता है वह,
बड़ी ही बेचैनी से,
बार –बार मिन्नतें करते हुए,
साहब! मुझे मेरे पैसे दिला दो.
वह न जाने कब से आ रहा है,
दिन भर गुजारिश करता है,
फिर वापस लौट जाता है,
कुछ और नहीं सुन पाया मैं,
आज तक सिवाय इसके,
साहब! मुझे मेरे पैसे दिला दो.
हर सुबह उसके चेहरे पर,
एक चमक -सी होती है,
जो दिन के साथ,
फीकी होती जाती है,
ज्यों –ज्यों पहर गुजरता है,
निवेदन आग्रह बन जाता है,
और शाम ढलते ही उसकी आशाएं,
अस्त हो जाती हैं,
बड़ी मुश्किल से रुंधे गले से,
एक अंतिम आग्रह करता है,
साहब! मुझे मेरे पैसे दिला दो.
आज वह हताश है,
आँखें बुझी-बुझी सी हैं,
शायद जगा हुआ है रात भर,
कुछ सोच रहा है,
कि आज खुद का सौदा कर देगा,
किसी बड़ी कम्पनी के बिचौलिए के हाथों,
कुछ महीनों के लिए,
भले ही घर छोडना होगा,
कम से कम पैसे तो आ जायेंगे,
घर की जरूरतें तो पूरी होंगी,
वह बेबस तो नहीं होगा ,
बच्चों और परिवार के सामने,
और बार-बार घिघियाना तो न पड़ेगा,
साहब! मुझे मेरी मजदूरी के पैसे दिला दो.