कोई
चाय या कोई, पान की दुकान देखिए.
अकेला
हो पेड़ तो, कोई बांध जाता बकरियाँ,
पसंद
न आए फिर भी, "मंच" गुमनाम देखिए.
आवारा फिरता है, शहर-शहर, गली-गली,
कहीं
मिल जाये कोई, बंजारन परेशां देखिए.
काम हो न हो, वक्त खर्चें इसकी चिंता में,
सुबह
जगें देर से, पर मौका चर्चा-ए-आम देखिए.
इत्तेफाक
न हो मज़हब से, रखे हों “नीरव”-सा उपनाम,
अलग-थलग न पड़ें ,सो शर्मा-वर्माजी-सा नाम देखिए. -नवनीत नीरव-
3 टिप्पणियां:
neerav ji ...
Naam k hi daam hain..sharma varma ki bheed me space hi nhi hai..pahchaan hi mushkil hai ..daam to baad ki baat :P:D hehehe
badhiya gazal hui hai.
लाजवाब शब्द सयोंजन के साथ सुन्दर ग़ज़ल .
great cohearent and touchy one.simple line yet piercing.
एक टिप्पणी भेजें