बुधवार, 7 दिसंबर 2011

ग़ज़ल

खुद से करूं इजहार, मुझे मंजूर नहीं है,
पर ऐसा नहीं है कि, तुझसे प्यार नहीं है।।

अल्फाज नहीं मिलते हैं, कभी कुछ एहसासों के,
कुछ है जो आज भी, शर्मोहया के पार नहीं है।।

सीने पे रख के बोझ हमेशा, चलता रहा हूं आद्तन,
इक दर्द है चुप सा मगर, असरदार नहीं है।।

जिसने भी किया है प्यार यहां, सांसें उधार लीं,
कहां ऐसा है ये कर्ज, कभी उतारना नहीं है।।

हर तरफ़ बजते हैं, तुम्हारे आह्टों के सुर,
साजों -सामां है हरसूं, पर कोई आवाज नहीं है।।

-नवनीत नीरव-

2 टिप्‍पणियां:

Vandana Singh ने कहा…

bahut khoob ...shayad aapke blog par pahli ghazal hai ye

keep it up .

Shivangi Shaily ने कहा…

Awesome read! :)