इधर
–उधर की, गुजरे पहर की,
रिश्ते-नातों की, गांव-शहर की,
जज्बातों
का अक्सर अतिक्रमण करती हैं .
मन
में बातें फिजूल फिरती हैं.......
अकेलापन
जिगरी दोस्त है,
रात
बचपन की सहेली है,
मंत्रोच्चार
या फिर उलटी गिनती,
न
सुलझाए पाए, ऐसी पहेली है,
हर
वक्त चक्कर पे चक्कर,
मीलों
ये हर रोज चलती हैं.
मन
में बातें फिजूल फिरती हैं....
अब
तो इनसे बातें भी करता हूँ,
खुद
सवालों के उत्तर देता हूँ,
कभी
प्यार का, कभी इजहार का,
अभिनय
आईने संग करता हूँ,
खुरदुरे
ख्यालात उभर आते हैं,
जब
ये उन्हें छूने को मचलती हैं,
मन में बातें फिजूल फिरती
हैं...... -नवनीत नीरव-
1 टिप्पणी:
good one ...
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