रविवार, 11 सितंबर 2011

मुखौटे

आज पूछना चाहता हूँ,
एक बात सभी से,
अपने जानने वालों से ,
पसंद करने वालों से,
तुम मुझे कितना जानते हो ?
यद्यपि  मालूम है मुझे,
जवाब तुम्हारा...
फिर भी पूछता हूँ,
ताकि जान सकूँ,
अपनी कारीगरी पर मुस्कुरा सकूँ,
कितना छला है मैंने तुम्हें?
कितने भ्रमित हो तुम आज तक?
मेरे अनगिनत रूपों से,
मुझ जैसे बहुरुपिए से,
मेरे मुखौटे से.

किसी तरह की लज्जा नहीं है मुझे,
आज यह बताने में कि,
"मैं बहुरुपिए देश से आता हूँ"
मेरा समाज ही बहुरुपिया है,
जो कहीं न कही दबाव डाल कर,
बहला- फुसला कर,
मजबूर करता है,
मुखौटे पहनने के लिए,
अपने जैसे बनने के लिए,
एक नहीं हजार चेहरे बदलने के लिए,
भूल आने के लिए अपने मूल चेहरे,
कहीं सुरक्षित जगह पर रख कर , 
विडम्बना है कि यह विज्ञान ,
हस्तानांतरित हो रहा है पीढ़ी दर पीढ़ी .

कभी -कभी कोफ़्त सी होती है,
अपने इस मुखौटे से,
सोचता हूँ कि एक दिन,
मैं इसे उतर फेकूं,
अपना वास्तविक रूप प्रकट करूँ,
सबके सामने,
शायद मैं भी देखना चाहता हूँ,
अपना असली चेहरा,
जो बस धुंधली भावनाओं में है,
मगर कौन सा असली ?
इसी असमंजस में हूँ,
कौन पहचानेगा मुझे,
शायद कोई नहीं,
अब तो लोग मुखौटे को ही,
जानते हैं पसंद करते हैं,
हो सकता है मैं अकेला हो जाऊं,
अलग-थलग पड़ जाऊं.

उफ्फ़..............
बहुत मुश्किल है इसको उतारना,
शायद एक डर है,
बेपर्द होने का,
अपनी शख्शियत भंग हो जाने का,
सच्चाई सबको डराती है न.   
कहीं न कहीं,
यह तो मेरे व्यक्तित्व का भाग है,
झूठी इज्जत और प्रतिष्ठा का,
जो बनाई गयी है बड़े मिहनत से,
लोगों से छल कर के,
इसके उतरने के लिए    
एक लंबा इंतजार करना होगा ,
जब मेरे शरीर के साथ
मुखौटा भी जायेगा,
अपनी किवदंतियां छोड़ कर.

-नवनीत नीरव-

1 टिप्पणी:

Vandana Singh ने कहा…

kai baar apni hi banai dhaarnayen galat saabit hone lagti ..tab ham khud ko dekhna chaahte hain ham kidhar khade hain apne najariye me or doosro ke najariye me ... mukhota nahi parivartan kahiye ..aasaan ho jayega dhal jaana

or kai roop hona insaan ki fitrat hai ..

har aadmi me hote hain ..dus bees aadmi , jisko bhi dekhiyega ..kai aar dekhiyega ..Nida Faazli